एकांतवासः जीवन को समृद्ध करे, अंतर्मन शुद्धिकरण करे

कोरोना काल में हम भले ही एकांतवास का पालन मजबूरीवश कर रहे हों लेकिन इसे दुनिया की लगभग सभी संस्कतियों व सभ्यताओं में मन की शांति व अंतर्मन के शुद्धिकरण (सैनिटाइजेशन) के लिए बेहद जरूरी और फायदेमंद बताया गया है। ___ आप चाहें तो समय-समय पर स्वयं एकांतवास का निश्चय लेकर इसका लाभ उठा सकते हैं। वास्तविक एकांतवास वह है जब आप कुछ देर खुद को अपने स्मार्टफोन या लैपटाप से भी दूर रखें । फ्रेंच फिलास्फर और गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने कहा है इंसान की सारी समस्याओं की जड उसके एक कमरे में चपचाप अकेले न बैठ पाने की आदत में है। आज के डिजिटल युग में हर कोई सेल्फ टाइम के बजाय सेल्फी टाइम और स्क्रीन टाइम ज्यादा व्यतीत कर रहा है एकांतवासः जीवन जिससे स्ट्रेस और एंग्जायटी का लेवल बढ़ रहा है क्योंकि उनमें अपनी विचारधारा के विपरीत कोई भी पोस्ट, कमेंट या वीडियो देखने पर मन उद्विग्न हो जाता हैमनचाही मात्र में लाइक या कमेंट न मिलने पर मन दुखी व बेचैन हो जाता है। यही वजह है कि आजकल ज्यादातर मनोविज्ञानी, व्यवहार विशेषज्ञ और समाजशास्त्री डिजिटल डिटाक्सिफिकेशन की सलाह देने लगे हैं ।आध्यात्मिक गुरु श्रवण और मनन पर जोर देते रहे हैं इसका उद्देश्य कुछ समय बाहर भटकने वाले ध्यान को स्व में केंद्रित करना है। एकांत के दौरान हमें लोगों के ध्यानाकर्षण ,उनके द्वारा प्रशंसा और अपनी पहचान स्थापित करने के लोभ से भी बचना चाहिए। शोधकर्ताओं की मानें तो लोग एक कमरे में बिना स्मार्टफोन या बिना किसी एक्टिविटी के 10 से 15 मिनट भी चैन से नहीं बैठ सकते । अंतर्मन से बातचीत के लिए न उनका मन करता है ना उनके पास मद्दे होते हैं। अगर अंतर्मन की शांति और शद्धिकरण चाहिए तो सेल्फ टाइम का पाजिटिव मैनेजमेंट सीखना होगा। इसके लिए पाजिटिव आत्म केंद्रित एक्सरसाइज जैसे योग और मेडिटेशन का सहारा लेना होगा । इनसे स्ट्रेस व एंग्जायटी से मुक्ति तो मिलेगी ही, साथ ही जब हम खुद को रचनात्मक समय देने लगेंगे तो विभिन्न चीजों के प्रति हमारा नजरिया खुद-बखुद बदलने लगेगा। जर्मनी के सुप्रसिद्ध फिलास्फर फेडरिक ने कहा है कि अगर आप जानते हैं कि आप क्यों जी रहे हैं तो आप अपने जीवन का एक-एक पल आनंद से जी सकते हैं ।अंतर्मन से जुड़ने के बाद हम देखने ,सुनने, जज करने या रिएक्ट करने की बजाय अवलोकन ,श्रवण ,परावर्तन और रिस्पाँडिंग के मूड में आ लगेगा जमना के सुप्रसिद्ध कोपे कहा है रिह अंता है खतरनाक जाते हैं । एकांतवास चिंता नहीं, चिंतन के लिए होता हैइस दौरान हम रचनात्मक चिंतन करके खद को तराश और संवार सकते हैं। दैनिक जीवन की चुनौतियों और उथल-पुथल से निपटने के लिए हमें बाहर से ज्यादा अंदर झांकने की जरूरत है जो सेल्फ टाइम और एकांतवास से ही संभव है। शांत मन की चिंतन शक्ति बढ़ जाती है। बड़े बड़े लेखकों, वैज्ञानिकों और दर्शनशास्त्रियों के उल्लेखनीय कार्य पाकिस्तानी चैनल ने एकांत वातावरण में ही संपन्न हुए हैं। स्क्र नि टाइम हमें कभी सोचने समझने की शक्ति नहीं देता बल्कि व्यर्थ के विषयों में उलझाता और मन को अशांत करता है। ज्यादा स्क्रीन टाइम अकेलेपन के एहसास का भी सबक बन सकता है जबकि एकांत चिंतन हमें आत्मसम्मान का एहसास कराता है और आत्ममूल्य का सही बोध कराता है ।  शिखर चंद जैन