लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हिंदू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं लेकिन ऐसा है नहीं और सच्चाई इसके बिल्कुल ही विपरीत है। दरअसल हमारे वेदों में उल्लेख हैं 33 कोटि देवी-देवताओं का। अब कोटि का अर्थ प्रकार भी होता है और करोड़ भी। तो लोगों ने उसे हिंदी में करोड़ पढ़ना शुरू कर दिया जबकि वेदों का तात्पर्य 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी- देवताओं से है (उच्च कोटि निम्न कोटि इत्यादि शब्द तो आपने सुना ही होगा जिसका अर्थ भी 'करोड न होकर 'प्रकार' होता है)। यह एक ऐसी भूल है जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया। इसे आप इस निम्नलिखित उदाहरण से अच्छी तरह समझ सकते हैं। अगर कोई कहता है कि बच्चों को कमरे में बंद रखा गया है और दूसरा इसी वाक्य की मात्र को बदल कर बोले कि बच्चों को कमरे में बंदर खा गया है। (बंद रखा - बंदर खा) कुछ ऐसी ही भूल अनुवादकों से हुईसिर्फ इतना ही नहीं, हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ उल्लेख है कि निरंजनो निराकारो एको देवो महेश्वरः अर्थात इस ब्रह्मांड में सिर्फ एक ही देव है जो निरंजन निराकार महादेव हैं। साथ ही यहां एक बात ध्यान में रखने योग्य है कि हिंदू सनातन धर्म मानव की उत्पत्ति के साथ ही बना है और प्राकृतिक है इसीलिए हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर ही जीना बताया गया है और प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गई है ताकि लोग प्रकृति के साथ खिलवाड़ न करें। जैसे कि: ० गंगा को देवी माना जाता है क्योंकि गंगाजल में सैंकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं। ० गाय को माता कहा जाता है क्योंकि गाय का दूध अमृत तुल्य और उनके गोबर एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं। ० तुलसी के पौधों को भगवान इसीलिए माना जाता है कि तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं। ० इसी तरह वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं। यही कारण है कि हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गई है क्योंकि प्रकृति से ही मनुष्य जाति है न कि मनुष्य जाति से प्रकृति है। अत: प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है। यही कारण है कि हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य, चन्द्र, वरूण, वायु, अग्नि को भी देवता माना गया है और इसी प्रकार कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं इसीलिए आप लोग बिल्कुल भी भ्रम में ना रहें क्योंकि ब्रह्मांड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं। अत: कुल 33 प्रकार के देवता हैं: 12 आदित्य हैं - धाता, मित, अर्यमा, शक्र, वरूण, अंश, भग, विवस्वान, पूष, सविता, त्वष्टा एवं विष्णु। 8 वसु हैं - धर, छव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष । 11 रूद्र हैं - हर, बहुरूप, त्रयम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भू, कपर्दी, रवत, म्रग्व्यथ, शर्व तथा कपाली। 2 अश्विनी कुमार हैं। कुल: 128112 त्र 33 देवी-देवता। इंद्रप्रस्थ संवाद
धर्म संस्कति:33 करोड देवी-देवता